न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में खुदा होता - नौशाद लखनवी
Naa Mandir Me Sanam Hote Na Masjid Men Khuda Hota - Ghazals of Naushad-lakhnavi
न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में खुदा होता नौशाद लखनवी |
न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में खुदा होता,
हमीं से यह तमाशा है, न हम होते तो क्या होता.
न ऐसी मंजिलें होतीं, न ऐसा रास्ता होता,
संभल कर हम ज़रा चलते तो आलम ज़ेरे-पा होता.
घटा छाती, बहार आती, तुम्हारा तज़किरा होता,
फिर उसके बाद गुल खिलते कि ज़ख़्मे-दिल हरा होता.
बुलाकर तुमने महफ़िल में हमको गैरों से उठवाया,
हमीं खुद उठ गए होते, इशारा कर दिया होता.
तेरे अहबाब तुझसे मिल के भी मायूस लौट गये,
तुझे 'नौशाद' कैसी चुप लगी थी, कुछ कहा होता.
- नौशाद लखनवी
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