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क्या जानिए किस बात पे मग़रूर रही हूँ - अदा जाफ़री

Kya Janiye Kis Baat Pe Magrur Rahi Hun Ada Jafri Ghazals

Kya-Janiye-Kis-Baat-Pe-Ada-Jafri-Ghazal
क्या जानिए किस बात पे मग़रूर रही हूँ  - अदा जाफ़री

क्या जानिए किस बात पे मग़रूर रही हूँ 
कहने को तो जिस राह चलाया है चली हूँ 

तुम पास नहीं हो तो अजब हाल है दिल का 
यूँ जैसे मैं कुछ रख के कहीं भूल गई हूँ 

फूलों के कटोरों से छलक पड़ती है शबनम 
हँसने को तिरे पीछे भी सौ बार हँसी हूँ 

तेरे लिए तक़दीर मिरी जुम्बिश-ए-अबरू 
और मैं तिरा ईमा-ए-नज़र देख रही हूँ 

सदियों से मिरे पाँव तले जन्नत-ए-इंसाँ 
मैं जन्नत-ए-इंसाँ का पता पूछ रही हूँ 

दिल को तो ये कहते हैं कि बस क़तरा-ए-ख़ूँ है 
किस आस पे ऐ संग-ए-सर-ए-राह चली हूँ 

जिस हाथ की तक़्दीस ने गुलशन को सँवारा 
उस हाथ की तक़दीर पे आज़ुर्दा रही हूँ 

क़िस्मत के खिलौने हैं उजाला कि अँधेरा 
दिल शो'ला-तलब था सो बहर-हाल जली हूँ 


  • अदा जाफ़री

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