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मुहम्मद अली साहिल की प्रसिद्ध शायरी

Best Classical Sher of Urdu Poet Mohammad Ali Sahil


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 मुहम्मद अली साहिल की प्रसिद्ध शायरी




मैं हूँ साहिल मुझमें हर एक मौज पाती है पनाह ,
मेरा होना इसलिए तूफ़ान को खलता रहा.



ख़याल उसका मेरे ज़ेहन को उजाला दे,
और उसकी याद मेरे जिस्म की थकन में रहे.



मैं तो साहिल हूँ मौज दरिया की
मुझको ख़ुद ही गले लगाती है



फ़रेब खा के भी वादे पे एतेबार किया
सुबूत फिर भी वफ़ा का वो मांगता क्यूँ है



कुछ कैफियत अजीब रही अपनी दोस्तो
की दोस्ती किसी से तो हद से गुज़र गए



नहीं है कोई ताल्लुक़ अगर मेरा तुझसे
तो फिर ये चेहरा तिरा ज़र्द ज़र्द सा क्यूँ है



कोई हल्की सी एक आहट भी 
तोड़ देती है इंतज़ार के तार



येे दर्द का हैे मुसल्सल जोे सिलसिला क्यों है
ठहर ठहर के कोई दिल में झांकता क्यों है



सरापा उसका है देखो निसाब की सूरत 
मैं उसको पढ़ता रहा हूँ किताब की सूरत


 मुहम्मद अली साहिल की प्रसिद्ध शायरी Best Classical Sher of Urdu Poet Mohammad Ali Sahil

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