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बला से मर्तबे ऊँचे न रखना किसी दरबार से रिश्ते न रखना - ताबिश मेहदी

Balaa Se Martabe Uunche Na Rakhnaa - Ghazals of  Tabish Mehdi 


Balaa-Se-Martabe-Uunche-Na-Rakhnaa-Tabish-Mehdi

बला से मर्तबे ऊँचे न रखना किसी दरबार से रिश्ते न रखना - ताबिश मेहदी 


बला से मर्तबे ऊँचे न रखना, 
किसी दरबार से रिश्ते न रखना.

जवानों को जो दरस-ए-बुज़दिली दें, 
कभी होंटों पे वो क़िस्से न रखना.

अगर फूलों की ख़्वाहिश है तो सुन लो, 
किसी की राह में काँटे न रखना.

कभी तुम साइलों से तंग आ कर, 
घरों के बंद दरवाज़े न रखना .

पड़ोसी के मकाँ में छत नहीं है, 
मकाँ अपने बहुत ऊँचे न रखना.

नहीं है घर में माल ओ ज़र तो क्या ग़म,
विरासत में मगर क़र्ज़े न रखना.

रईस-ए-शहर को मैं जानता हूँ ,
कोई उम्मीद तुम उस से न रखना.

बहुत बे-रहम है 'ताबिश' ये दुनिया, 
तअल्लुक़ इस से तुम गहरे न रखना. 


  • ताबिश मेहदी 

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