राहत इंदौरी की प्रसिद्ध शायरी - Best Shayari of Rahat Indori
Best Classical Sher of Urdu Poet Rahat Indori
राहत इंदौरी की प्रसिद्ध शायरी |
राहत इंदौरी की प्रसिद्ध शायरी - Best Shayari of Rahat Indori
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो. |
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे. |
नए किरदार आते जा रहे हैं मगर नाटक पुराना चल रहा है. |
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे. |
मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे. |
दोस्ती जब किसी से की जाए दुश्मनों की भी राय ली जाए. |
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है म्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते. |
चेहरों के लिए आईने कुर्बान किये हैं, इस शौक में अपने बड़े नुकसान किये हैं. महफ़िल में मुझे गालियाँ देकर है बहुत खुश, जिस शख्स पर मैंने बड़े एहसान किये है. |
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है. |
मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए. |
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है. |
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है. |
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो. |
मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले. |
ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे. |
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए. |
हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते, जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते. अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है, उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते. |
सहमा |
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो. |
मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए. |
शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए. |
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते. |
सूरज सितारे चाँद मिरे सात में रहे जब तक तुम्हारे हात मिरे हात में रहे. |
बोतलें खोल कर तो पी बरसों आज दिल खोल कर भी पी जाए. |
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो. |
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है. |
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा. |
वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया. |
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी. |
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे, फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे. ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे, अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे. |
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है. |
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