मुनव्वर राना की प्रसिद्ध शायरी - Best Shayari of Munawwar Rana
Collection of Munawwar Rana Shayari
मुनव्वर राना की प्रसिद्ध शायरी |
Best Shayari of Munawwar Rana
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है. |
उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं. |
दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन बच्चों ने खिलौनों की तरफ़ देख लिया है. |
मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई. |
मैं इसी मिट्टी से उट्ठा था बगूले की तरह और फिर इक दिन इसी मिट्टी में मिट्टी मिल गई. |
मोहब्बत एक पाकीज़ा अमल है इस लिए शायद सिमट कर शर्म सारी एक बोसे में चली आई. |
खिलौनों की दुकानों की तरफ़ से आप क्यूँ गुज़रे ये बच्चे की तमन्ना है ये समझौता नहीं करती. |
किसी की याद आती है तो ये भी याद आता है कहीं चलने की ज़िद करना मिरा तय्यार हो जाना. |
तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको तमाम खेल मोहब्बत में इंतिज़ार का है. |
तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता तुम्हारी याद आई और खिड़की खोल दी हम ने. |
हम नहीं थे तो क्या कमी थी यहाँ हम न होंगे तो क्या कमी होगी. |
हँस के मिलता है मगर काफ़ी थकी लगती हैं उस की आँखें कई सदियों की जगी लगती हैं. |
हम सब की जो दुआ थी उसे सुन लिया गया फूलों की तरह आप को भी चुन लिया गया. |
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना. |
किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा. |
तुम्हें भी नींद सी आने लगी है थक गए हम भी चलो हम आज ये क़िस्सा अधूरा छोड़ देते हैं. |
वुसअत-ए-सहरा भी मुँह अपना छुपा कर निकली सारी दुनिया मिरे कमरे के बराबर निकली. |
मैं राह-ए-इश्क़ के हर पेच-ओ-ख़म से वाक़िफ़ हूँ ये रास्ता मिरे घर से निकल के जाता है. |
अब आप की मर्ज़ी है सँभालें न सँभालें ख़ुशबू की तरह आप के रूमाल में हम हैं. |
कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा. |
आते हैं जैसे जैसे बिछड़ने के दिन क़रीब लगता है जैसे रेल से कटने लगा हूँ मैं. |
मैं लोगों से मुलाकातों के लम्हे याद रखता हूँ मैं बातें भूल भी जाऊं तो लहजे याद रखता हूँ. |
मिट्टी में मिला दे की जुदा हो नहीं सकता अब इससे जयादा मैं तेरा हो नहीं सकता. |
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो. |
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से मैं शर्मिंदा बहुत हूँ महँगाई के मौसम में ये त्यौहार पड़ा है. |
मिट्टी का बदन कर दिया मिट्टी के हवाले मिट्टी को कहीं ताज-महल में नहीं रक्खा. |
फेंकी न 'मुनव्वर' ने बुज़ुर्गों की निशानी दस्तार पुरानी है मगर बाँधे हुए है. |
किसी दिन मेरी रुस्वाई का ये कारन न बन जाए तुम्हारा शहर से जाना मिरा बीमार हो जाना. |
कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था. |
तुम ने जब शहर को जंगल में बदल डाला है फिर तो अब क़ैस को जंगल से निकल आने दो. |
सो जाता है फ़ुटपाठ पे अख़बार बिछा कर मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाता. |
मुनव्वर राना की प्रसिद्ध शायरी - Best Shayari of Munawwar Rana
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