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फिर किसी हादसे का दर खोले - अस्नाथ कंवल

Fir Kisi Hadase Ka Dar Khole - Ghazals of Aasnath Kanwal

Fir-Kisi-Hadase-Ka-Dar-Khole-Aasnath-Kanwal

 फिर किसी हादसे का दर खोले - अस्नाथ कंवल 


फिर किसी हादसे का दर खोले
पहले पर्वाज़ को वो पर खोले

जैसे जंगल में रात उतरी हो
यूँ उदासी मिली है सर खोले

पहले तक़दीर से निमट आए
फिर वो अपने सभी हुनर खोले

मंज़िलों ने वक़ार बख़्शा है
रास्ते चल पड़े सफ़र खोले

जो समझता है ज़िंदगी के रुमूज़
मौत का दर वो बे-ख़तर खोले

है 'कँवल' ख़ौफ़ राएगानी का
कैसे इस ज़िंदगी का डर खोले 

Fir Kisi Hadase Ka Dar Khole - Ghazals of Aasnath Kanwal

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