मोहब्बत में कोई सदमा उठाना चाहिए था - बुशरा एजाज़
Mohabbat Men Koi Sadama Uthaana Chahiye Tha - Ghazals of Bushra Aejaz
मोहब्बत में कोई सदमा उठाना चाहिए था - बुशरा एजाज़ |
भुलाया था जिसे वो याद आना चाहिए था
गिरी थीं घर की दीवारें तो सेहन-ए-दिल में हम को
घरौंदे का कोई नक़्शा बनाना चाहिए था
उठाना चाहिए थी राख शहर-ए-आरज़ू की
फिर इस के बाद इक तूफ़ान उठाना चाहिए था
कोई तो बात करना चाहिए थी ख़ुद से आख़िर
कहीं तो मुझ को भी ये दिल लगाना चाहिए था
कभी तो एहतिमाम-ए-आरज़ू भी था ज़रूरी
कोई तो ज़ीस्त करने का बहाना चाहिए था
मिरी अपनी और उस की आरज़ू में फ़र्क़ ये था
मुझे बस वो उसे सारा ज़माना चाहिए था
Mohabbat Men Koi Sadama Uthaana Chahiye Tha - Ghazals of Bushra Aejaz
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