मंज़र है अभी दूर ज़रा हद्द-ए-नज़र से - डॉ. पिन्हाँ
Manzar Hai Abhi Dur Zara Hadd-E-Nazar Se Ghazals of Dr Pinhaan
मंज़र है अभी दूर ज़रा हद्द-ए-नज़र से - डॉ. पिन्हाँ |
मंज़र है अभी दूर ज़रा हद्द-ए-नज़र से,
सौग़ात-ए-सफ़र और है असबाब-ए-सफ़र से
तुम मेरे तआ'क़ुब का तसव्वुर भी न करना
पूछो मिरी मंज़िल मिरे टूटे हुए पर से
मैं शर की शरारत से तो होश्यार हूँ लेकिन
अल्लाह बचाए तो बचूँ ख़ैर के शर से
बारिश ने मिरी टूटी हुई छत नहीं देखी
आँगन में लगी आग तो बादल नहीं बरसे
पत्थर न बना दे मुझे मौसम की ये सख़्ती
मर जाएँ मिरे ख़्वाब न ता'बीर के डर से
धुल जाता है सब दर्द मिरी रूह का इस में
रहमत जो बरसती है मिरे दीदा-ए-तर से
तन्हाई-पसंदी मिरी फ़ितरत का भी जुज़ था
मौसम भी ये कहता है निकलना नहीं घर से
इंसान कोई हो तो मैं ता'वीज़ बना लूँ
दुनिया मिरी बद-तर हुई भूतों के खंडर से
'पिंहाँ' मिरी ग़ज़लों को बहुत नाज़ है उस पर
तासीर की दौलत जो मिली दस्त-ए-हुनर से
Manzar Hai Abhi Dur Zara Hadd-E-Nazar Se Ghazals of Dr Pinhaan
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