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अहमद फ़राज़ की प्रसिद्ध शायरी - Best Shayari of Ahmad Faraz

Best Classical Sher of Urdu Poet Ahmad Faraz


Best-Shayari-of-Ahmad-Faraz
अहमद फ़राज़ की प्रसिद्ध शायरी 

Best Shayari of Ahmad Faraz 

 बर्बाद करने के और भी रास्ते थे फ़राज़,
 न जाने उन्हें मुहब्बत का ही ख्याल क्यूं आया..


 इतनी सी बात पे दिल की धड़कन रुक गई फ़राज़,
 एक पल जो तसव्वुर किया तेरे बिना जीने का..


 अपने ही होते हैं जो दिल पे वार करते हैं फ़राज़,
 वरना गैरों को क्या ख़बर की दिल की जगह कौन सी है..


 गिला करें तो कैसे करें फ़राज़,
 वो लातालुक़ सही मगर इंतिखाब तो मेरा है..


 इस तरह गौर से मत देख मेरा हाथ ऐ फ़राज़,
 इन लकीरों में हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं..


 मेरी ख़ुशी के लम्हे इस कदर मुख्तसिर हैं फ़राज़
 गुज़र जाते हैं मेरे मुस्कराने से पहले..


 ये वफ़ा उन दिनों की बात है फ़राज़,
 जब लोग सच्चे और मकान कच्चे हुआ करते थे..


 तू भी तो आईने की तरह बेवफ़ा निकला फ़राज़,
 जो सामने आया उसी का हो गया..


 उसने मुझे छोड़ दिया तो क्या हुआ फ़राज़,
 मैंने भी तो छोड़ा था सारा ज़माना उसके लिए..


 चलता था कभी हाथ मेरा थाम के जिस पर,
 करता है बहुत याद वो रास्ता उसे कहना..


 बच न सका ख़ुदा भी मुहब्बत के तकाज़ों से फ़राज़,
 एक महबूब की खातिर सारा जहाँ बना डाला..


 खाली हाथों को कभी गौर से देखा है फ़राज़,
 किस तरह लोग लकीरों से निकल जाते हैं..


 दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की फ़राज़,
 लोगों ने मेरे घर से रास्ते बना लिए..


 मैंने माँगी थी उजाले की फ़क़त इक किरन फ़राज़,
 तुम से ये किसने कहा आग लगा दी जाए..


 वो बारिश में कोई सहारा ढूँढता है फ़राज़,
 ऐ बादल आज इतना बरस की मेरी बाँहों को वो सहारा बना ले..


 उस शख्स से बस इतना सा ताल्लुक़ है फ़राज़,
 वो परेशां हो तो हमें नींद नहीं आती..


 ज़माने के सवालों को मैं हँस के टाल दूँ फ़राज़,
 लेकिन नमी आखों की कहती है मुझे तुम याद आते हो..


 ये मुमकिन नहीं की सब लोग ही बदल जाते हैं,
 कुछ हालात के सांचों में भी ढल जाते हैं..


 उम्मीद वो रखे न किसी और से फ़राज़,
 हर शख्स मुहब्बत नहीं करता उसे कहना..


 हम अपनी रूह तेरे जिस्म में छोड़ आए फ़राज़,
 तुझे गले से लगाना तो एक बहाना था..


 वो बात बात पे देता है परिंदों की मिसाल,
 साफ़ साफ़ नहीं कहता मेरा शहर ही छोड़ दो..


 मैंने आज़ाद किया अपनी वफ़ाओं से तुझे,
 बेवफ़ाई की सज़ा मुझको सुना दी जाए..


 वो रोज़ देखता है डूबे हुए सूरज को फ़राज़,
 काश मैं भी किसी शाम का मंज़र होता..


 अब उसे रोज़ न सोचूँ तो बदन टूटता है फ़राज़,
 उमर गुजरी है उस की याद का नशा किये हुए..


 कौन देता है उम्र भर का सहारा फ़राज़,
 लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते रहते हैं..

अहमद फ़राज़ की प्रसिद्ध शायरी - Best Shayari of Ahmad Faraz

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