ग़म शायरी Collection Of Gham Shayari
लोकप्रिय ग़म पर बनी शायरी का संग्रह - Collection Of Gham Shayari |
अलीम अख़्तर
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वो तअल्लुक़ है तिरे ग़म से कि अल्लाह अल्लाह, हम को हासिल हो ख़ुशी भी तो गवारा न करें. |
फ़ाज़िल जमीली
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सफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है तिरी ख़ुशी के लिए तेरा ग़म भी रखना है. |
जौन एलिया
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सारी दुनिया के ग़म हमारे हैं और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं. |
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
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हम ने तुम्हारे ग़म को हक़ीक़त बना दिया तुम ने हमारे ग़म के फ़साने बनाए हैं. |
वहीद क़ुरैशी
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हम आज राह-ए-तमन्ना में जी को हार आए न दर्द-ओ-ग़म का भरोसा रहा न दुनिया का. |
चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी
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हाए कितना लतीफ़ है वो ग़म जिस ने बख़्शा है ज़िंदगी का शुऊर. |
मुबारक अज़ीमाबादी
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ये ग़म-कदा है इस में 'मुबारक' ख़ुशी कहाँ ग़म को ख़ुशी बना कोई पहलू निकाल के. |
हिमायत अली शाएर
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फिर मिरी आस बढ़ा कर मुझे मायूस न कर हासिल-ए-ग़म को ख़ुदा-रा ग़म-ए-हासिल न बना. |
अहसन मारहरवी
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मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है ये ज़िंदगी की है सूरत तो ज़िंदगी क्या है. |
असर अकबराबादी
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फ़िक्र-ए-जहान दर्द-ए-मोहब्बत फ़िराक़-ए-यार क्या कहिए कितने ग़म हैं मिरी ज़िंदगी के साथ. |
जलील मानिकपूरी
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बहर-ए-ग़म से पार होने के लिए मौत को साहिल बनाया जाएगा. |
एजाज़ अंसारी
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ज़िंदगी दी हिसाब से उस ने और ग़म बे-हिसाब लिक्खा है. |
अबु मोहम्मद सहर
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तकमील-ए-आरज़ू से भी होता है ग़म कभी ऐसी दुआ न माँग जिसे बद-दुआ कहें. |
असद भोपाली
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न आया ग़म भी मोहब्बत में साज़गार मुझे वो ख़ुद तड़प गए देखा जो बे-क़रार मुझे. |
मिर्ज़ा ग़ालिब
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ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक. |
सलीम अहमद
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दुख दे या रुस्वाई दे ग़म को मिरे गहराई दे. |
होश तिर्मिज़ी
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दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे अब तो ये दर्द की सूरत ही दवा हो जैसे. |
अकबर हैदराबादी
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दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से कैसी तन्हाई टपकती है दर ओ दीवार से. |
कालीदास गुप्ता रज़ा
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ख़िरद ढूँढती रह गई वजह-ए-ग़म मज़ा ग़म का दर्द आश्ना ले गया. |
फ़ारूक़ बाँसपारी
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ग़म-ए-इश्क़ ही ने काटी ग़म-ए-इश्क़ की मुसीबत इसी मौज ने डुबोया इसी मौज ने उभारा. |
फ़ना निज़ामी कानपुरी
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ग़म से नाज़ुक ज़ब्त-ए-ग़म की बात है ये भी दरिया है मगर ठहरा हुआ. |
क़मर मुरादाबादी
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ग़म की तौहीन न कर ग़म की शिकायत कर के दिल रहे या न रहे अज़मत-ए-ग़म रहने दे. |
शकील बदायुनी
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ग़म की दुनिया रहे आबाद 'शकील' मुफ़लिसी में कोई जागीर तो है. |
साहिर लुधियानवी
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ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया. |
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